दवोत्थान एकादशी, जिसे देव प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है, हर साल कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की योग निद्रा से जागते हैं, और चातुर्मास का समापन होता है। इसे धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इसी दिन से शुभ कार्यों की शुरुआत होती है।
देवोत्थान एकादशी का महत्व
धार्मिक मान्यता है कि आषाढ़ शुक्ल एकादशी से भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं और चार माह के बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। इन चार महीनों को चातुर्मास कहा जाता है, जिसमें कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता। देवोत्थान एकादशी के दिन से विवाह, गृह प्रवेश और अन्य मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है। इस दिन श्रीहरि विष्णु और मां लक्ष्मी की विशेष पूजा का विधान है, जिससे सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
शुभ मुहूर्त
इस वर्ष देवोत्थान एकादशी का शुभ मुहूर्त इस प्रकार है:
पूजा का समय: सुबह 05:47 बजे से दोपहर 01:12 बजे तक
पारण का समय: अगले दिन सूर्योदय से लेकर प्रातः 08:42 बजे तक
पूजा विधि
1. सूर्योदय से पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2. भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर को गंगाजल से स्नान कराएं।
3. पीले फूल, तुलसी दल और मिठाई चढ़ाएं।
4. धूप-दीप जलाकर विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
5. देवोत्थान एकादशी व्रत का संकल्प लें और दिनभर उपवास रखें।
देवोत्थान एकादशी के अनुष्ठान और मान्यताएं
देवोत्थान एकादशी के दिन व्रत रखने से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है। इस व्रत का पालन करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है और जीवन में समृद्धि एवं खुशहाली आती है। ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस व्रत को पूरी श्रद्धा के साथ करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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